ऐसा मुख्यमंत्री जो जेब से भरता था पेट्रोल और टेलीफोन का बिल @
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बात उन दिनों की है जब चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह मॉल एवेन्यू स्थित बंगले में रहते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि घर आया रिश्तेदार किसी को फोन कर रहा है। वह उससे तो कुछ बोले नहीं, लेकिन शाम को निजी सचिव को आदेश हुआ कि बंगले पर टेलीफोन के पास एक रजिस्टर रखवा दिया जाए, जिस पर फोन करने और आने का ब्यौरा दर्ज हो।
‘निजी सचिव ने कहा, मुख्यमंत्री होने के नाते आपके व्यय की कोई सीमा नहीं है। इसलिए रजिस्टर रखवाने की कोई जरूरत नहीं लगती।’ पर, चौधरी साहब तो अलग ही मिट्टी के बने थे। आखिर यह थे तो वही चौधरी चरण सिंह जिन्होंने बेटी-दामाद के वन विभाग की जीप से लखनऊ आ जाने पर उसका किराया अपनी जेब से भरा था।
चौधरी साहब बोले, ‘मुख्यमंत्री को असीमित अधिकार का मतलब यह तो नहीं कि सरकारी धन निजी काम पर खर्च हो।’ वह रजिस्टर रखवा कर माने।
इसके बाद हर महीने रजिस्टर से मिलाकर सरकारी काम के लिए हुए टेलीफोन का बिल निकालकर शेष का भुगतान चौधरी चरण सिंह निजी खाते से करते।
निजी दौरे का खर्च मेरे खाते से चुकता किया जाए’
मुख्यमंत्री बने हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें एक निजी समारोह में भाग लेने जाना पड़ा। वहां से लौटकर आए तो ड्राइवर से कहा, ‘इसे अलग नोट कर लेना।’
ड्राइवर उन्हें गौर से देखने लगा तो बोले, ‘ सरकारी दौरे छोड़कर निजी कार्यक्रमों में जाने पर वाहन का पेट्रोल पर होने वाला खर्च मेरे निजी खाते से चुकता किया जाएगा।
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