निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने भक्तों को किया संबोधित।
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फरीदाबाद, 20 अक्टूबर (अरुण शर्मा)। परमात्मा के साथ जब हमारा भक्ति का नाता गहरा हो जाता है तब जीवन में दु:ख की परिस्थिति भी छोटी लगने लगती है और फिर जीवन में आने वाली हर परिस्थिति में इस निरंकार के साथ का हमें एहसास होता है। उक्त उद्दगार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने दशहरा ग्राउंड फरीदाबाद में आयोजित विशाल संत समागम में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। इस पावन संत समागम में फरीदाबाद के अतिरिक्त बल्लभगढ़, पलवल, गुडगांव, दिल्ली एवं एनसीआर के अन्य स्थानों से हजारों की संख्या में श्रदालु भक्त सम्मिलित हुए।
सत्गुरु माता जी ने ब्रह्मज्ञान के महत्व बताते हुए कहा कि जब हमें निरंकार परमात्मा का बोध हो जाता है तब हमारे अंदर स्वत: ही दैवीय और मानवीय गुणों का विकास हो जाता है। तत्पश्चात सभी में इस परमपिता परमात्मा के दर्शन होने लगते है और फिर हम अपने हर कार्य का निर्वाह करते हुए भी निरंतर इसकी भक्ति कर सकते है। युगों-युगों से सभी संत महात्माओं ने यही प्रयास किया है कि परमात्मा की जानकारी के उपरांत उनके जीवन में जो भी सकारात्मक परिवर्तन आया है वैसा ही प्रभाव हर भक्त के जीवन में आये।
सतगुरु माता जी ने भ्रम के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए उदाहरण सहित समझाया कि किसी व्यक्ति को फल या चॉकलेट की मिठास का तभी पता चलेगा जब उसने अपनी जीभा से उसे चखा हो। इसके विपरीत जिसने कभी उसे ग्रहण ही नहीं किया वह उसकी मिठास को कभी नहीं जान सकता। वह तो केवल उसके रंग से ही उसके स्वाद का अंदाजा लगा सकता है। वहीं यदि किसी अन्य व्यक्ति को फल का स्वाद लेना है तो उसे खाकर ही उसके स्वाद का पता चलेगा न कि उसके रंग से अंदाजा लगाकर। सत्गुरु माता जी ने यही समझाया कि जिसने स्वयं परमात्मा का बोध नहीं किया वह न केवल अपने आपको भ्रमित करता है अपितु अन्य के लिए भी भ्रांतियां उत्पन्न करता है।
इस अवसर पर फरीदाबाद के स्थानीय मुखी श्री चरणदास मेहमी ने अपनी तथा फरीदाबाद की अन्य सभी ब्रांचों के मुखी महात्माओं की ओर से सत्गुरु माता जी का और समागम में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं का ह्रदय से आभार प्रकट किया।
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