विद्यालय में अभिभावक की भूमिका !
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हमने हमेशा यही सुना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है ।यदि अभिभावक अपने बच्चे का दाखिला करवाने की सोच रहे हैं तो प्राथमिकता इस बात की होती है कि प्राइवेट स्कूल में दाखिला करवाया जाए ।अभिभावक के मन-मस्तिष्क में यह बात पूरी तरह से घर कर चुकी है की सरकारी स्कूल की स्थिति बहुत खराब होती है। पर बात यह आती है कि जो भी इन स्कूलों पर अंगुली उठाते हैं उन्होंने क्या कभी यह जानने की कोशिश की है ।कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे घर जाकर आखिर करते क्या हैं ? अभिभावक यह जानने का भी प्रयास नहीं करते कि बच्चा घर क्या कर रहा है ?शिक्षक को अपने छात्र से असीम प्रेम होता है वह चाहता है कि उसके पढ़ाये छात्र के साथ अपव्यय तथा अवरोधन की स्थिति उत्पन्न न हो । बच्चे ने जब से विद्यालय में दाखिला लिया तब से लेकर उसकी अंतिम कक्षा तक बच्चा ज्ञानार्जन करे। प्रतिदिन विद्यालय आए परंतु क्या ऐसा होता है ? नहीं , ऐसा नहीं होता है क्योंकि उस बच्चे का जिस दिन दाखिला होता है बस उसी दिन के बाद से अभिभावक बच्चे को शिक्षक के सुपुर्द कर देते हैं । अब घर जाकर सुबह बच्चे को जगाने की जिम्मेदारी , स्कूल लाने की जिम्मेदारी भी शिक्षक की हो जाती है ? अभिभावक कभी बच्चे को स्कूल छोड़ने गए हो ?कभी उन्होंने इस बात की चिंता की हो कि हमारे बच्चे के पास पर्याप्त मात्रा में कॉपी कलम आदि हैं या नहीं , यह बच्चा घर से सीधा स्कूल जा भी रहा है या नहीं , कभी चिंता की हो कि स्कूल से मिला गृह कार्य किया भी है या नहीं , या कभी स्कूल जाकर देखते हो कि बच्चा कुछ सीख भी रहा है या नहीं । वह इस बात की आजादी मनाते हैं कि स्कूल में दाखिला करा कर उनकी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से खत्म हो चुकी है समस्या यहां पर यह आती है कि यदि बच्चा सरकारी स्कूल में न होकर किसी प्राइवेट स्कूल में होता है तो उसी बच्चे पर अधिक ध्यान दिया जाता है उसके सुबह उठने से लेकर तैयार होने नाश्ता कराने , स्कूल पहुंचाने , कॉपी , कलम ,किताब , जूता मोजा आदि सबकी जिम्मेदारी अभिभावक की होती है । जब बच्चा घर लौटकर आता है तो अभिभावक बैग खोलकर देखते हैं कि गृह कार्य में क्या दिया गया है , और वह उसको पूर्ण भी कराते हैं । बच्चा घर पर भी अपने विषय पढता है, याद करता है , उस बच्चे पर सभी की नजर रहती है । सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षक बहुत ही होनहार व प्रशिक्षित हैं वह कई विषयों में दक्ष हैं सीटेट, टेट सुपर टेट आदि परीक्षा उत्तीर्ण कर इन विद्यालयों के शिक्षक बने हैं । जब एक व्यक्ति शिक्षक बनता है तो वह अपने आप को धन्य समझता है क्योंकि “कोठारी आयोग ने कहा था कि भारत के भाग्य का निर्माण उसके विद्यालयों में हो रहा है ।” इसी सोच के साथ वह अपने छात्रों को पढाता है और उसके पढ़ाये हुए बच्चों में से कोई डॉक्टर , इंजीनियर, वकील ,बैंक मैनेजर ,नर्स , पुलिसवाला ,सेना का जवान आदि बनेंगे । परंतु वह जिन उम्मीदों के साथ विद्यालय आता है क्या उन्हीं उम्मीदों के साथ अभिभावक अपने बच्चों को इन सरकारी स्कूलों में भेजते हैं ? यह एक चिंतन का विषय है , शिक्षक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा तभी दे पाएगा जब परिस्थिति पूरी नहीं तो आधी ही सही उसके अनुकूल हों । समाज को चिंतन करने की आवश्यकता है कि विद्यालय समाज के अंदर है या बाहर । बच्चे के शैक्षिक विकास में शिक्षक की जितनी जिम्मेदारी है उतनी ही अभिभावक की भी है । सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक इस बात को भलीभांति समझ लें और उतनी ही जिम्मेदारी पूर्ण करें जितनी प्राइवेट स्कूल में
अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावक करते हैं , तो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी किसी से पीछे नहीं रहेंगे ।
लेखिका :-इ. प्रधानाध्यापिका प्रियंका सिंह, उच्च प्राथमिक विद्यालय गवां ब्लॉक रजपुरा (सम्भल)
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